एकलिंगनाथजी: मेवाड़ के अधिष्ठाता

एकलिंगनाथजी: मेवाड़ के अधिष्ठाता

एकलिंगनाथजी: मेवाड़ के अधिष्ठाता भगवान एकलिंगनाथजी को अधिष्ठाता एवं महाराणा स्वयं को इनका दीवान मानते है। मेवाड़ के महाराणाओं के आराध्य देव एकलिंगनाथ जी मेवाड़ के अधिपति और महाराणा उनके दीवान कहलाते रहे हैं। इसी कारण मेवाड़ के सभी ताम्रपत्र, शिलालेख, पट्टे, परवानों में दीवानजी आदेशात लिखा गया है। देवाधिदेव महादेव एकलिंगनाथजी के रूप में मेवाड़ के महाराणाओं तथा मेवाड़ राज्य के प्रमुख आराध्य देव हैं। आइए जानते है एकलिंगनाथजी की महिमा के बारे में

ऊँठाला का युद्ध : हरावल का हक

ऊँठाला का युद्ध : हरावल का हक

ऊँठाला का युद्ध: ऊँठाला के युद्ध को केवल चुंडावत और शक्तावत वीरों के बीच हरावल के हक की प्रतिस्पर्धा के रूप में देखना उसके ऐतिहासिक महत्व को सीमित कर देगा। यह युद्ध महाराणा अमर सिंह जी के नेतृत्व में लड़ा गया था। लेकिन इस युद्ध का मुख्य उद्देश्य मेवाड़ की स्वतंत्रता और मुगलों के खिलाफ संघर्ष था। यह युद्ध तुर्क मुगल सिपहसालार कायम खां के विरुद्ध लड़ा गया था, जो ऊँठाला दुर्ग में तैनात था

राव चन्द्रसेन राठौड़ : आखिर अकबर भी हारा

राव चन्द्रसेन राठौड़

राव चन्द्रसेन राठौड़ (1562-1581) मारवाड़ राज्य के राठौड़ शासक थे। वे राव मालदेव के छोटे बेटे और मारवाड़ के उदयसिंह के छोटे भाई थे । मारवाड़ के इतिहास में राव चन्द्रसेन राठौड़ को भूला-बिसरा राजा या मारवाड़ के प्रताप नाम से जाना जाता है। वे अकबर के खिलाफ 20 वर्ष तक लड़े। राव चन्द्रसेन राठौड़ ने अपने पिता की नीति का पालन किया और उन्हे मारवाड़ में मुगल साम्राज्य के विस्तार को रोकने के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।

महाराज शक्ति सिंह : दुणा दातार चौगुणा झुंझार

महाराज शक्ति सिंह

महाराज शक्ति सिंह का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया (1542 ई. ) मेवाड़ राजपरिवार में हुआ , वे महाराणा उदय सिंह के द्वितीय पुत्र एवं हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप के छोटे भाई थे। स्वाभिमानी महाराज शक्ति सिंह एक योद्धा ही नहीं बल्कि एक कूटनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने अपनी कूटनीति से अकबर के षड़यंत्र को सफल नहीं होने दिया। प्रसिद्ध सिसोदिया वंश के शक्तावत शाखा के संस्थापक थे

जनरल सगत सिंह राठौड़ – गोवा मुक्ति संग्राम और बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के महानायक

जनरल सगत सिंह राठौड़

जनरल सगत सिंह राठौड़ : भारतीय सेना के वो जांबाज सेनानायक जिन्होंने गोवा मुक्ति संग्राम के तहत गोवा को भारत में मिलाया , सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाक के दो टुकड़े (बांग्लादेश) करने का श्रेय भी जनरल सगत सिंह को ही जाता है। सन् 1967 में तत्कालीन सरकार के आदेश के बावजूद सिक्किम के पास नाथु ला दर्रा चीन को न सौपा और युद्ध में 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार कर चीनी सेना को खदेड़ दिया। जिसकी वजह से नाथु ला दर्रा आज भी भारत के पास है।

रूठी रानी उमादे भटियाणी

Ruthi Rani Umade Bhatiyani

जैसलमेर की राजकुमारी थी उमादे भटियाणी को राजस्थान की रूठी रानी उमादे भटियाणी के नाम से जाना जाता है । वह जैसलमेर के राजा रावल लूणकरण की बेटी थीं। एवं जोधपुर के राजा राव मालदेव की परिणीता थीं। उमादे भटियाणी मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह की रानी धीरबाई भटियाणी की बहन थी। स्वाभिमानी उमादे भटियाणी जीवनभर अपने पतिदेव मालदेव से रूठी रही। लेकिन राजा मालदेव के स्वर्गवास के बाद सती हुई ऐसे अनूठे उदाहरण इतिहास में शायद ही मिलेंगे।

कन्नोज महाराजा जयचंद गद्दार नहीं , देशभक्त थे

महाराजा जयचंद

महाराजा जयचंद का नाम आज भारत के इतिहास में भारतीय वामपंथी इतिहासकारो द्वारा राष्ट्रद्रोही शब्द का पर्यायवाची बनाया गया। इनके अनुसार मूहम्मद गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए महाराजा जयचंद ने आमंत्रित किया था। मूहम्मद गौरी को आमंत्रित करने का मिथक कैसे लोकप्रिय हुआ ? तराईन की लड़ाई के लगभग 400 साल बाद, आइन-ए-अकबरी ने महाराजा जयचंद द्वारा पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ गौरी का साथ देने की झूठी कहानी फैलाई। और जिस गहरवार राजवंश के सम्मान में सलामी दी जानी चाहिए थी, उस राजवंश को राजनीतिक षड्यंत्रों के द्वारा कलंकित किया गया।

जोधा – अकबर इतिहास का सबसे बड़ा झूठ , मरियम उज़-ज़मानी ही जोधाबाई थी

जोधा - अकबर इतिहास का सबसे बड़ा झूठ

जो वीर और वीरांगनाये अपने धर्म, अपनी स्वतन्त्रता, अपनी आन – बान और शान के लिए केसरिया बाना धारण कर रणचंडी का कलेवा बन गए वो क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं ? हजारों की संख्या में एक साथ अनगिनत जौहर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई किसी मुगल से विवाह कर सकती हैं ? इतिहास को विकृत कर जोधाबाई के झूठ का सहारा लेकर क्षत्रियों को नीचा दिखाने की एक कोशिश है जोधाबाई।

एक सरल , सहज , जनता के राजा – महाराज रणधीर सिंह जी भींडर

महाराज रणधीर सिंह जी भींडर

महाराज रणधीर सिंह जी भींडर राष्ट्रनायक हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप के भाई महाराज शक्ति सिंहजी के वंशज है। उनको वंशानुगत के तौर पर “त्याग, तपस्या और बलिदान” के समृद्ध सांस्कृतिक-नैतिक मूल्य और संस्कार विरासत में मिले है।

गौरा और बादल : दो वीर योद्धा जिनके शौर्य व पराक्रम से अलाउद्दीन ख़िलजी भी काँपता था

गौरा और बादल

शौर्य और बलिदान का प्रतीक मेवाड़ अपने ह्रदय में महान वीरो और क्षत्राणियो की गौरवपूर्ण गाथा को संजोए हुए हैं। यह गवाह है चित्तौडगढ़ के जौहर और शाके के लिए , जो वीरो का अपने धर्म, अपनी स्वतन्त्रता, अपनी आन – बान और शान के लिए केसरिया बाना धारण कर रणचंडी का कलेवा बन गए। इनमे वीर योद्धा गौरा और बादल जिनके नाम और पराक्रम से मुगल आक्रांता भी थर – थर काँपते थे । मुहणोत नैणसी के प्रसिद्ध काव्य ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ में इन दो वीरों के बारे में पुख़्ता जानकारी मिलती है. इस काव्य के अनुसार की रिश्ते में चाचा और भतीजा लगने वाले ‘गौरा और बादल’ जालौर के ‘चौहान वंश’ से संबंध रखते थे, गोरा तत्कालीन चित्तौड़ के सेनापति थे एवं बादल उनके भतीजे थे। दोनो अत्यंत ही वीर एवं पराक्रमी योद्धा थे,