Rao Maldev: मारवाड़ के अदम्य योद्धा राव मालदेव

Rao Maldev: राव मालदेव, मारवाड़ की धधकती ज्वाला, वो शूरवीर जिनके शौर्य के आगे शेरशाह सूरी तक कांप उठा ! उनकी तलवार जब म्यान से बाहर आती, तो दुश्मनों की सांसें थम जातीं। युद्ध नीति में अपराजेय, अद्वितीय सैन्य कौशल, प्रशासन में अद्वितीय-राव मालदेव ने मारवाड़ को स्वाभिमान, समृद्धि और सुरक्षा का अभेद्य दुर्ग बना दिया।

अदम्य योद्धा राव मालदेव

राव मालदेव (1511-1562) राजस्थान के इतिहास के सबसे वीर और शक्तिशाली शासकों में से एक थे। वे राव गांगा के पुत्र थे और 1522 में मारवाड़ की गद्दी संभाली। अपने शासनकाल में उन्होंने मारवाड़ को अजेय शक्ति बना दिया और इसकी सीमाओं का विस्तार किया। उनकी तलवार की धार इतनी प्रखर थी कि दिल्ली सल्तनत और गुजरात के सुल्तान भी उनसे भय खाते थे।

1544 के समेल के युद्ध में उनका सामना शेरशाह सूरी से हुआ। मालदेव की सेना जीत के करीब थी, लेकिन दुर्भाग्यवश शेरशाह सूरी की छल कपट के कारण पराजय हुई। इसके बावजूद, उनकी वीरता से प्रभावित होकर शेरशाह ने कहा था-
“अगर मेरे पास राव मालदेव जैसे राजा होते, तो मैं पूरे हिंदुस्तान पर राज कर सकता !”

राव मालदेव का प्रारंभिक जीवन

राव मालदेव का जन्म वि॰सं॰ १५६८ (5 दिसंबर 1511) को हुआ था। वे राव गांगा के पुत्र थे, जिन्होंने मारवाड़ को एक सशक्त राज्य बनाने की नींव रखी। मालदेव ने युवावस्था से ही अपनी सैन्य शक्ति और प्रशासनिक कौशल का परिचय दिया। पिता की मृत्यु के पश्चात् वि॰सं॰ १५८८ (१५३१ ई.) में सोजत में मारवाड़ की गद्दी पर बैठे।

मारवाड़ के इतिहास में राव मालदेव का राज्यकाल मारवाड़ का “शौर्य युग” कहलाता है। राव मालदेव अपने युग का महान् योद्धा, महान् विजेता और विशाल साम्राज्य के स्वामी थे। उसने अपने बाहुबल से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया था। सन 1522 में जब वे मारवाड़ के शासक बने, तब क्षेत्र अस्थिरता से गुजर रहा था। उन्होंने अपने शासनकाल में न केवल अपने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित किया बल्कि उसे समृद्धि की ओर भी अग्रसर किया।

राव मालदेव का विवाह

जैसलमेर के राव लूणकरण की पुत्री उमादे का विवाह 1536 ई. में जोधपुर के राव मालदेव के साथ हुआ, विवाह के उपरांत राव मालदेव व उमादे में अनबन हो जाने के कारण राजस्थान के इतिहास में रानी उमादे को रूठी रानी के नाम से जाना जाता है।

रूठी रानी उमादे भटियाणी

जैसलमेर की राजकुमारी थी उमादे भटियाणी को राजस्थान की रूठी रानी उमादे भटियाणी के नाम से जाना जाता है। वह जैसलमेर के राजा रावल लूणकरण की बेटी थीं। एवं जोधपुर के राजा राव मालदेव की परिणीता थीं। उमादे भटियाणी मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह की रानी धीरबाई भटियाणी की बहन थी। स्वाभिमानी उमादे भटियाणी जीवनभर अपने पतिदेव मालदेव से रूठी रही। लेकिन राजा मालदेव के स्वर्गवास के बाद सती हुई ऐसे अनूठे उदाहरण इतिहास में शायद ही मिलेंगे।

राव मालदेव की वीरता और सैन्य कौशल

सैन्य शक्ति और विस्तार – राव मालदेव ने अपने शासनकाल में मारवाड़ राज्य की सीमाओं का काफी विस्तार किया। उनके समय में मारवाड़ सबसे शक्तिशाली राज्यों में गिना जाने लगा। उन्होंने अजमेर, नागौर, बाड़मेर और मेवाड़ के कुछ क्षेत्रों को भी अपने अधीन कर लिया था।

राव मालदेव को उनकी अद्वितीय युद्ध रणनीतियों के लिए जाना जाता है। उनकी सेनाओं ने दिल्ली सल्तनत और मुगल आक्रांताओं को कई बार चुनौती दी। उनके शासनकाल के दौरान मारवाड़ की शक्ति अपने चरम पर थी।

राव मालदेव और शेरशाह सूरी में युद्ध

सुमेलगढ़ (सामेल) का युद्ध

शेरशाह सूरी अपनी ८०,००० सैनिकों की एक विशाल सेना के साथ मालदेव पर आक्रमण करने चला (1543ई.), मालदेव महान् विजेता था परन्तु उसमें कूटनीतिक छल-बल और ऐतिहासिक दूर दृष्टि का अभाव था। शेरशाह में कूटनीतिक छल-बल और सामरिक कौशल अधिक था।

दोनों सेनाओं ने सुमेल-गिरी के मैदान (पाली) में आमने-सामने पड़ाव डाला। राव मालदेव भी अपनी विशाल सेना के साथ था। राजपूतों के शौर्य की गाथाओं से और अपने सम्मुख मालदेव का विशाल सैन्य समूह देखकर शेरशाह ने भयभीत होकर लौटने का निश्चय किया। रोजाना दोनों सेनाओं में छुट-पुट लड़ाई होती, जिसमें शत्रुओं का नुकसान अधिक होता।

शेरशाह सूरी का कूटनीतिक छल-बल

इसी समय शेरशाह सूरी ने छल कपट से नकली जा़ली पत्र मालदेव के शिविर के पास रखवा दिए। उनमें लिखा था कि सरदार जैंता व कूंम्पा राव मालदेव को बन्दी बनाकर शेरशाह को सौंपे देंगे। ये जाली पत्र चालाकी से राव मालदेव के पास पहुँचा दिए थे। इससे राव मालदेव को अपने ही सरदारों पर सन्देह हो गया। यद्यपि सरदारों ने हर तरह से अपने स्वामी की शंका का समाधान कूरने की चेष्टा की, तथापि उनका सन्देह निवृत्त न हो सका और वह रात्रि में ही अपने शिविर से प्रमुख सेना लेकर वापस लौट गये। ऐसी स्थिति में मगरे के नरा चौहान अपने नेतृत्व में 3000 राजपूत सैनिको को लेकर युद्ध के लिए आगे आये।

वीरवर जैता और कूम्पा का भीषण युद्ध

अपनी स्वामीभक्ति पर लगे कलंक को मिटाने के लिए जैता, कूम्पा आदि सरदारों ने पीछे हटने से इन्कार कर दिया और रात्रि में अपने 8000 सवारों के साथ समर के लिए प्रयाण किया। सुबह जल्दी ही शेरशाह की सेना पर अचानक धावा बोल दिया। जैता व कूपां के नेतृत्व में 8000 राजपूत ( सैनिक क्षत्रिय ) अपने देश और मान की रक्षा के लिए सम्मुख रण में जूझकर कर मर मिटे। इस युद्ध में राठौड़ जैता, कूम्पा पंचायण करमसोत, सोनगरा अखैराज, नरा चौहान आदि मारवाड़ के प्रमुख वीर इतनी वीरता से लड़ें की शेरशाह सूरी को बहुत मुश्किल से ही विजय प्राप्त हुई थी। यह रक्तरंजित युद्ध वि॰सं॰1600 पोष सुद 11 (ई.स. 1544 जनवरी 5) को समाप्त हुआ।

तब शेरशाह ने कहा था कि “खुदा का शुक्र है कि किसी तरह फतेह हासिल हो गई, वरना मैंने एक मुट्टी भर बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की बादशाहत ही खो दी होती।”

शेरशाह का जोधपुर पर शासन हो गया। राव मालदेव पीपलोद (सिवाणा) के पहाड़ों में चला गया। शेरशाह सूरी की मृत्यु हो जाने के कारण राव मालदेव ने वि॰सं॰ 1603 (ई.स. 1546) में जोधपुर पर दुबारा अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे पुनः मारवाड़ के क्षेत्रों को दुबारा जीत लिया गया।

राव मालदेव का गुजरात अभियान

अहमदाबाद अभियान: मालदेव ने गुजरात के शासकों के खिलाफ सफल युद्ध लड़े और मारवाड़ की शक्ति को बढ़ाया।

राव मालदेव की प्रशासनिक दक्षता और योगदान

राव मालदेव केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक कुशल प्रशासक भी थे। उन्होंने:

  • किलों का निर्माण: उन्होंने कई दुर्गों का निर्माण करवाया, जिनमें मेहरानगढ़ किला प्रमुख है।
  • कृषि और व्यापार: उनके शासनकाल में व्यापार को बढ़ावा मिला और कृषि के लिए नई नीतियाँ लागू की गईं।
  • सामाजिक सुधार: उन्होंने अपने राज्य में जातिगत भेदभाव को कम करने और न्याय व्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास किया।
  • संस्कृति और विरासत: राव मालदेव ने राजस्थान की लोक संस्कृति, संगीत और स्थापत्य कला को भी बढ़ावा दिया। उनकी नीतियों से मारवाड़ में कला और स्थापत्य की एक नई दिशा मिली।

राव मालदेव का स्वर्गवास

७ दिसंबर 1562 को राव मालदेव का स्वर्गवास हुआ। फारसी इतिहास लेखकों ने राव मालदेव को “हिन्दुस्तान का हशमत वाला राजा” कहा है।

निष्कर्ष

राव मालदेव की वीरता, कूटनीति और प्रशासनिक कुशलता के कारण उन्हें राजस्थान का ‘शेर’ कहा जाता है। उन्होंने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। राव मालदेव (1497-1562) मारवाड़ के महान शासकों में से एक थे, जिन्होंने 1532 से 1562 तक जोधपुर पर शासन किया। इन्होंने अपने राज्यकाल में कुल 52 युद्ध किए। एक समय इनका छोटे बड़े 58 परगनों पर अधिकार रहा। वे राठौड़ वंश के एक पराक्रमी और कुशल योद्धा थे, जिनकी वीरता, सैन्य रणनीति और प्रशासनिक क्षमता के लिए उन्हें जाना जाता है। उनकी वीरता और शासन कला की कहानियाँ आज भी राजस्थान के लोकगीतों और इतिहास में जीवंत हैं।

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