चेतक Chetak : महाराणा प्रताप का स्वामीभक्त घोड़ा

चेतक (Chetak) – महाराणा प्रताप का स्वामीभक्त घोड़ा अद्वितीय वीरता, बुद्धिमता एवम् स्वामीभक्ति के लिए युगों तक याद किया जाएगा। युद्ध में घायल होने पर भी अपने स्वामी हिन्दुआ सूरज महाराणा प्रताप को रणभूमि हल्दीघाटी से सुरक्षित बाहर निकालने में सफल रहा। उसने बड़े नाले (लगभग 26 फीट) पर छलांग लगाकर जैसे ही पार किया गम्भीर रूप से घायल हो गया और वीरगति को प्राप्त हुआ। आज भी उस स्थान पर चेतक (Chetak) का स्मारक (समाधि) बना हुआ है।

चेतक (Chetak) :

चेतक ((Chetak) महाराणा प्रताप का स्वामीभक्त घोड़ा था। इसके बारे में ख्यातो में कहा गया है कि एक घोड़े का व्यापारी काठियावाड़ क्षैत्र (वर्तमान गुजरात) से काठियावाड़ी नस्ल के घोड़े लेकर मेवाड़ में आया। महाराणा प्रताप ने उनमें से तीन घोड़ों चेतक , त्राटक और अटक का चयन किया।

महाराणा प्रताप ने तीनों घोड़ों के युद्ध कोशल, दौड़ आदि का परीक्षण किया, जिनमें से अटक परीक्षण के दौरान काम ( मृत्यु) आ गया। चेतक को महाराणा प्रताप ने अपने लिए रखा। त्राटक अपने छोटे भाई महाराज शक्ति सिंह जी को दे दिया।

चेतक नीले रंग का था। यहाँ नीले रंग का अर्थ Blue से नहीं है । मेवाड़ी भाषा में नीले रंग को – श्वेत रंग लिए हल्का घुसर रंग को कहते हैं। चेतक अपने आप में अद्वितीय घोड़ा था जो महाराणा प्रताप के साथ साथ उनके जिरह बख्तर, भाला, तलवारे एवम् अन्य अस्त्र शस्त्रों सहित वजन को लेकर युद्धों में सफलतापूर्वक कार्य करता था।

विकिपीडिया के अनुसार – इन घोड़ों के बदलें महाराणा प्रताप ने व्यापारी को जागीर में गढ़वाड़ा और भानोल नामक दो गांव दिए।

चेतक घोड़े के नाम से ही भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर एच एल चेतक रखा गया है।

चेतक (Chetak) और हल्दीघाटी का युद्ध :

हल्दीघाटी हाल के रचयिता प्रो. देवकर्ण सिंह जी रूपाहेली लिखते हैं –

आवध अर पाखर मंड्या , गज अस करी धुमाल ।

जंह अनबोल्या रण चढ्या , हल्दीघाटी हाल। ।।

इस जगविख्यात युद्ध के लिए प्रताप की फौज में इस धरती का जन जन ही सज धज कर नहीं गया बल्कि सेना के मूक हाथी घोड़े भी शस्त्रों सहित जिरह बख्तर धारण किए अपने अपने मालिको के साथ चढ़ाई में शरीक हुए और करिश्माई लड़ाई लड़ कर इतिहास में गौरव मंडित है ।

(In this world – famed battle, the participation of diverse people equipped with various weapons is undoubtedly important. Nonetheless, it needs to be noticed amply that a significant number of dumb war – animals also played their part admirably. The names of the horse Chetak and the elephants Ramprasad and Luna in the army of the Maharana are worthy of particular mention .)

दुनिया में युद्ध तो अनेक हुए किन्तु जाति, धर्म, वर्ग ओर वर्ण की भावनाओ से परे जहा अनगिनत राष्ट्रभक्तो योद्धाओं ने शत्रु से लोहा लिया ऐसी शौर्य धरा हल्दीघाटी इकलौती ही है ।

हल्दीघाटी युद्ध :

विक्रम संवत् १६३३ द्वितीय ज्येष्ठ तदानुसार 18 जून 1576 को हल्दीघाटी युद्ध हुआ था। हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप का सारथी चेतक जिरह बख्तर से युक्त था। चेतक को उसके मस्तक पर हाथी की सूंड का कवच पहनाया गया था।

चेतक घोड़े ने भी युद्ध में अपना रण कौशल दिखाया। वो अपने स्वामी प्रताप के इशारों पर एक बार तो मुगल सेनापति के हाथी के मस्तक पर चढ़ गया और प्रताप ने जैसे ही भाले का वार किया। हाथी का महावत मारा गया और मानसिंह हाथी के होदे में छुप गया।

चेतक बहलौल खा के पास पहुंचा महाराणा प्रताप ने एक ही वार मे उसको घोड़े सहित काट दिया। शत्रु सेना में हाहाकार मच गया और वो पीछे हटने लगी।

हमे आज दिन तक यही पढ़ाया गया की युद्ध में शत्रु सेना जीती। लेकिन सत्य ये है कि हल्दीघाटी मे राष्ट्रीय सेना जीती। क्योंकि युद्ध के बाद अकबर ने मानसिंह का दीवाने खास में आना बन्द करवा दिया था।

चेतक की वीरगति :

चेतक शत्रु सेना के हाथी के ऊपर छलांग लगाते समय हाथी के सूंड में लगी तलवार से जख्मी हो गया था। महाराणा प्रताप को भी कई घाव लगे थे । चेतक अपने स्वामी को युद्ध क्षैत्र से बाहर निकालने में सफल रहा और जैसे ही एक बरसाती बड़े नाले को पार करने के लिए छलांग लगाई। और नाला पार किया लेकिन चेतक गंभीर घायल हो गया। गम्भीर घायल चेतक का सिर प्रताप अपने गोद में लेकर बैठे और अन्ततः चेतक वीरगति को प्राप्त हो गया । अपने जीवन में पहली बार प्रताप की आंखों में आसूं थे।

चेतक का स्मारक (समाधि) :

चेतक की वीरगति होने के बाद दोनो भाई महाराणा प्रताप और छोटे भाई शक्ति सिंह जी ने चेतक का दाह संस्कार किया । उस स्थान पर स्मारक बना हुआ है। उसके सार संभाल एवम् पूजा करने के लिए महाराणा ने बहुत भूमि दी। जो अब तक पुजारियों के अधिकार में है।

विश्व में एक मात्र मेवाड़ धरा जहां घोड़े की भी पूजा होती हैं । धन्य है मेवाड़ धरा। धन्य है राष्ट्रीय चेतक घोड़ा । जिसने राष्ट्रभक्त की तरह विश्व – पटल पर अपना नाम अंकित करा गया। नमन है चेतक की राष्ट्रभक्ति को । नमन है उसकी स्वामीभक्ति को ।

आपकों भी हल्दीघाटी एक बार अवश्य आना चाहिए। यह article आपको कैसा लगा, कॉमेंट करे एवम् हमे सुझाव देवे। आपके सुझाव हमारा मार्गदर्शन करेंगे।

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