विजयादशमी ( दशहरा ) – शौर्य पर्व

विजयादशमी (दशहरा)- शौर्य पर्व का प्रारम्भ त्रैलोक्य विजेता रावण पर भगवान श्री राम की विजय स्मृति अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हुई। किन्तु कालान्तर में यह शौर्य और विजय प्राप्ति का आधार बनने वाले शस्त्रों की पुजा में परिवर्तित होता चला गया।

नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी भगवती के नौ स्वरूपों की आराधना के बाद दशमी तिथि को विजयादशमी या दशहरा पर समस्त सिद्धियां प्राप्त करने के लिए पवित्र माने जाने वाले शमी के वृक्ष और देवी अपराजिता के अलावा अस्त्र – शस्त्रों का पूजन भी किया जाता है। विजयादशमी को नीलकंठ पक्षी के दर्शन करना भी अति शुभ माना गया है।

विजयादशमी या दशहरा पर भगवान शिव से शुभफल की कामना एवम् नीलकंठ के दर्शन करने से जीवन में भाग्योदय, सुख समृद्धि एवं धन धान्य की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार पवनसुत हनुमान जी ने भी श्री रामजी की पत्नी सीता माता को शमी के समान पवित्र कहा था।

विजयादशमी या दशहरा के दिन घर के पूर्व दिशा में में या घर के मुख्य स्थान पर शमी की डाली प्रतिष्ठित करके उसका विधि पूर्वक पूजन करने से घर परिवार में खुशहाली आती है। शनि ग्रह के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है और मानव के सभी पापों और दुखों का अंत होता है। विवाहित महिलाऐं अखंड सौभाग्यवती होती है।

धर्म की अधर्म पर विजय –

सैकड़ों वर्षों से सामान्य जन जहां रावण , कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतलो को रामवेशी व्यक्ति से संहार करवा कर उस काल की स्मृति को अक्षुण्ण रखते है, वहीं क्षत्रिय शौर्योल्लास में इस पर्व की अभ्यर्थना करता है। लंकाधिपति रावण को काम , क्रोध , लोभ और मोह का प्रतीक माना जाता है। विजयादशमी (दशहरा) बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जानें वाला पर्व है।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने रावण का वध करके इस जगत को यह संदेश दिया कि धर्म की अधर्म पर सदैव विजय होती है। जिस प्रकार रावण शक्तिशाली एवम् विद्वान होते हुए भी अनाचार के कारण उसका पतन हुआ उसी प्रकार मानव के भीतर बुराइयां होने से उसका पतन निश्चित है। मानव के बुरे कर्म एक न एक दिन उसके अंत का कारण अवश्य ही बनते है। इसलिए हमें कभी भी सच्चाई और अच्छाई के मार्ग से हटना नहीं चाहिए। विजयादशमी या दशहरा धर्म की अधर्म पर विजय का पर्व है।

आयुध पूजन –

सदियों से राजमहल से लेकर प्रत्येक क्षत्रिय के पूजाघर तक समान रूप से श्रृद्धा से मनाया जानें वाला शौर्य पर्व आज भी उसी निष्ठा व समर्पण भाव से मनाया जाता है।

आज भी घर घर में मनाए जाने वाला क्षत्रिय के इस सबसे बड़े त्यौहार पर शस्त्र पूजन पारंपरिक विधि से सम्पन्न होता है। शस्त्र पूजन में उपलब्ध शस्त्रोंनुसार – तलवार , खांडा , कटार , धनुष , तरकश , गुर्ज , ढाल , बल्लम , भाला , फरसा , त्रिशूल , बड़ी नाल की बंदूक , चंवर , निशान और नगाड़ा आदि पूजन में सम्मिलित किए जाते है।

इसके बाद अश्वपूजन होता है जिसमें अश्व का भी पारंपरिक विधि से पूजन होता है। यह पर्व प्रत्येक क्षत्रिय के घर श्रृद्धा से मनाकर हमारी परम्परा को जीवंत रखने का श्रेष्ठ द्योतक है।

अबूझ मुहूर्त –

विजयादशमी (दशहरा) – शौर्य पर्व समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति और बुराई पर अच्छाई की विजय का पावन पर्व है। इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध करके पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। सनातन धर्म या हिन्दू धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य , धार्मिक अनुष्ठान , पूजा पाठ , विवाह , गृह प्रवेश आदि के लिए शुभ मुहूर्त देखा जाता है।

शुभ मुहूर्त किसी भी नए कार्य के शुभारंभ या मांगलिक कार्य को प्रारंभ करने का वह समय होता है जब सभी गृह और नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हुए कर्ता को शुभ फल प्रदान करते हैं। विजयादशमी या दशहरा को शुभ कार्य करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। विजयादशमी के दिन को शास्त्रों में अबूझ मुहूर्त माना गया है। इस दिन बिना मुहूर्त निकाले कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन नए व्यापार या दुकान का प्रारंभ, गृह प्रवेश, नए वाहन या सामान खरीदना, बच्चों के संस्कार जैसे – नामकरण, अन्नप्राशन, यज्ञोपवित, वेदारंभ आदि शुभ कार्य किए जा सकते है।

विजय काल –

विजयादशमी के दिन सायं काल को जब सूर्यास्त होने का समय और आकाश में तारे उदय होने के समय को सिद्धिदायक विजयकाल कहा जाता हैं। उस समय हमें भगवान श्री राम और हनुमानजी की आराधना करनी चाहिए। इससे हमें पूरे वर्ष कार्यों में विजय या सफलता मिलती है।

आपके अमूल्य सुझाव , क्रिया प्रतिक्रिया स्वागतेय है।

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