Bhanwar Singh Thada
राजा हम्मीर देव चौहान: अपना शीश काटकर शिव को अर्पित कर दिया
राजा हम्मीर देव चौहान: क्षत्रिय स्वाभिमान, अडिग संकल्प और अजेय पराक्रम की ज्वलंत ज्योति, रणथम्भौर के अमर प्रतापी शासक राजा हम्मीर देव चौहान भारतभूमि के गौरवशाली इतिहास में अमिट स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। जब तुर्क आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी की अजेय सेना ने संपूर्ण भारत को अपने अधीन करने की ठानी, तब वीर हम्मीर देव ने अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु अद्वितीय शौर्य और बलिदान का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। रणथम्भौर का दुर्ग उनका अडिग संकल्प था, जिसे छल, कपट और बाहुबल से तोड़ना असंभव सिद्ध हुआ। हम्मीर देव ने अपने वचन को जीवन से बढ़कर माना और “हम्मीर हठ ” की परंपरा स्थापित की, जिसमें मृत्यु स्वीकार्य थी परंतु आत्मसमर्पण नहीं।
Rao Maldev: मारवाड़ के अदम्य योद्धा राव मालदेव
Rao Maldev: राव मालदेव, मारवाड़ की धधकती ज्वाला, वो शूरवीर जिनके शौर्य के आगे शेरशाह सूरी तक कांप उठा ! उनकी तलवार जब म्यान से बाहर आती, तो दुश्मनों की सांसें थम जातीं। युद्ध नीति में अपराजेय, अद्वितीय सैन्य कौशल, प्रशासन में अद्वितीय-राव मालदेव ने मारवाड़ को स्वाभिमान, समृद्धि और सुरक्षा का अभेद्य दुर्ग बना दिया।
Maharana Sanga: अपराजेय योद्धा हिंदुपति महाराणा साँगा
Maharana Sanga: महाराणा सांगा (महाराणा संग्राम सिंह) मेवाड़ के एक वीर योद्धा और महान शासक थे, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में राजपूत शौर्य और स्वाभिमान की अमर गाथा लिखी। महाराणा सांगा ने अपने जीवन में 100 से अधिक युद्ध लड़े और अपने शरीर पर 80 घावों के साथ भीषण संघर्ष किया। उन्होंने दिल्ली सल्तनत, गुजरात और मालवा जैसे शक्तिशाली साम्राज्यों को चुनौती दी और खानवा के युद्ध (1527) में मुगल आक्रांता बाबर से लोहा लिया। उनकी वीरता, रणकौशल और दृढ़ संकल्प ने उन्हें “हिंदुपति” की उपाधि दिलाई।
बाप्पा रावल: मेवाड़ के संस्थापक और तुर्क आक्रांताओं के अजेय योद्धा
बाप्पा रावल: जब अखंड भारतभूमि पर विधर्मियों के घातक कदम बढ़े, तब एक सूर्य मेवाड़ की धरती पर उदित हुए-बाप्पा रावल ! बाप्पा रावल का जन्म क्षत्रिय धर्म की ज्वाला के रूप में हुआ था। उनके रणकौशल की गूंज अरावली की चोटियों से लेकर सिंध के मैदानों तक गूंजी। अरब आक्रांताओं के दंभ को चूर-चूर करने वाले यह योद्धा भारत के पहले रक्षक थे, जिन्होंने खलीफा के सेनानायक जुनैद और अन्य विध्वंसकों को धूल चटा दी। चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाकर आज के पूरे दक्षिण एशिया में सनातन धर्म की अखंड ज्वाला जलाए रखी।
अजयगढ़ का ऐतिहासिक किला: चंदेल वंश की शौर्यता का प्रतीक
अजयगढ़ का ऐतिहासिक किला (Ajaygarh Fort) वीरता, पराक्रम और गौरवशाली अतीत का प्रतीक है। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में स्थित यह दुर्ग विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की ऊँचाई पर अडिग प्रहरी की भांति खड़ा है। चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित इस किले ने अनेक आक्रमणों को सहा, परंतु इसने हमेशा स्वाभिमान और स्वाधीनता की गाथा गाई। गगनचुंबी प्राचीरें, प्राचीन मंदिर, गुप्त सुरंगें और अजेय संरचना इस दुर्ग की अपराजेयता को दर्शाती हैं। इतिहास के पृष्ठों में अंकित यह दुर्ग, आज भी अपने गौरवशाली अतीत की वीरगाथाओं को सुनाने के लिए अविचल खड़ा है।
क्षत्रिय धर्म श्लोक: जो अधर्म, अन्याय एवं अत्याचार से प्रजा की रक्षा करता है।
क्षत्रिय धर्म श्लोक – क्षतात् त्रायते इति क्षत्रिय: अर्थात् जो विनाश से बचाए, विनाश से रक्षा (त्राण) करता है वही क्षत्रिय हैं। धर्म का अर्थ है धारण करना। जो अधर्म, अन्याय, अत्याचार, असत्यता एवम् उत्पीड़न से रक्षा करता है वही क्षत्रिय धर्म है। श्रीमद्भागवद्गीता भागवत पुराण, वेदों में – ऋग्वेद और यजुर्वेद , मनुस्मृति में भी क्षत्रियों के स्वाभाविक गुण साहस, वीरता और पराक्रम,तेज ,आभा और ऊर्जा जो उनके व्यक्तित्व से झलकती है। उदारता, असहायों की सहायता करना, नेतृत्व और संरक्षक की भूमिका निभाना आदि गुण क्षत्रियों के खून में है।
एकलिंगनाथजी: मेवाड़ के अधिष्ठाता
एकलिंगनाथजी: मेवाड़ के अधिष्ठाता भगवान एकलिंगनाथजी को अधिष्ठाता एवं महाराणा स्वयं को इनका दीवान मानते है। मेवाड़ के महाराणाओं के आराध्य देव एकलिंगनाथ जी मेवाड़ के अधिपति और महाराणा उनके दीवान कहलाते रहे हैं। इसी कारण मेवाड़ के सभी ताम्रपत्र, शिलालेख, पट्टे, परवानों में दीवानजी आदेशात लिखा गया है। देवाधिदेव महादेव एकलिंगनाथजी के रूप में मेवाड़ के महाराणाओं तथा मेवाड़ राज्य के प्रमुख आराध्य देव हैं। आइए जानते है एकलिंगनाथजी की महिमा के बारे में