“शौर्य वही जो संकट में टीका रहे , स्वाभिमान वही जो झुके नहीं।”
मेवाड़ के परमवीर योद्धा महाराणा हम्मीर, जिन्होंने न सिर्फ भारत का खोया हुआ गौरव लौटाया, बल्कि उस समय के सबसे शक्तिशाली सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक को पराजित कर छः महीने तक बंदी बनाकर रखा। महाराणा हम्मीर जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी विदेशी आक्रांताओं के सामने घुटने नहीं टेके और 14वीं शताब्दी में मेवाड़ की स्वतंत्रता को पुनर्जीवित किया।
क्षत्रिय संस्कृति में आज हम महाराणा हम्मीर केअद्भुत शौर्य को विस्तार से जानेंगे, जिसमें चित्तौड़ की विजय, देवी बरबड़ीजी का आशीर्वाद और सिंगोली के युद्ध का ऐतिहासिक विजय शामिल है।
कौन थे महाराणा हम्मीर (Maharana Hammir) ?
महाराणा हम्मीर या राणा हम्मीर सिंह चौदहवीं शताब्दी के मध्य में मेवाड़ पर शासन करने वाले शक्तिशाली राजा थे। वह प्रसिद्ध बप्पा रावल की वंश परंपरा से थे। जब मेवाड़ के तत्कालीन शासक रतन सिंह खिलजी आक्रमण में वीरगति को प्राप्त हुए, तब चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी का नियंत्रण हो गया। मेवाड़ की अस्मिता को पुनः जाग्रत करने का कार्य महाराणा हम्मीर ने ही किया।
उनका शासनकाल:
महाराणा हमीर ने 1326 ईस्वी में चित्तौड़गढ़ का पुनः अधिग्रहण किया और एक स्वतंत्र एवं शक्तिशाली राज्य की स्थापना की।
महाराणा हम्मीर : जीवन परिचय
- जन्म: 1314 ई.
- शासनकाल: 1326–1364 ई. (38 वर्ष)
- वंश: सिसोदिया (गुहिल वंश की शाखा)
- पिता: अरिसिंह प्रथम
- माता: उर्मिला कंवर
- पत्नी: सोंगरी (मालदेव की पुत्री)
- संतान: क्षेत्र सिंह, लूना
विषम घाटी पंचानन: महाराणा हम्मीर को “विषम घाटी पंचानन” (संकटकाल में सिंह के समान) की उपाधि से नवाजा गया, जो उनकी रणनीतिक कुशलता और अदम्य साहस को दर्शाता है। कीर्ति स्तम्भ में राणा हम्मीर को “विषमघाटी पंचानन” कहा गया है, जिसका अर्थ है ” कठिन रास्तों का शेर ।” यह उपाधि उनकी वीरता, रणनीतिक कौशल और अपने राज्य की रक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण इलाकों और स्थितियों को पार करने की क्षमता को दर्शाती है।
चित्तौड़ की पुनः विजय – देवी बरबड़ी जी का आशीर्वाद
13वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत ने मेवाड़ पर कब्जा कर लिया था, लेकिन महाराणा हम्मीर ने इसे पुनः स्वतंत्र कराने का संकल्प लिया।
देवी बरबड़ी जी का आशीर्वाद
- हम्मीर ने चित्तौड़ को स्वतंत्र कराने के लिए कई बार आक्रमण किए, लेकिन असफल रहे। निराश होकर वे द्वारका यात्रा पर निकले।
- गुजरात के खोड़ गाँव में उनकी मुलाकात देवी बरबड़ी जी (हिंगलाज का अवतार) से हुई, जिन्होंने उन्हें फिर से युद्ध करने का आशीर्वाद दिया।
- देवी के पुत्र बारूजी ने 500 घोड़ों के साथ हम्मीर की सहायता की, जिससे उनकी सेना मजबूत हुई ।
चित्तौड़ पर विजय (1326 ई.)
- हम्मीर ने मालदेव (चौहान) की बेटी सोंगरी से विवाह किया, जिससे खिलजी नाराज हो गया और चित्तौड़ छीन लिया।
- हम्मीर ने बारूजी और चारण सहयोगियों के साथ मिलकर चित्तौड़ पर पुनः अधिकार किया।
- इसके बाद उन्होंने अन्नापूर्णा मंदिर का निर्माण करवाया, जो आज भी चित्तौड़गढ़ में मौजूद है ।
सिंगोली का युद्ध (1336 ई.): तुगलक की पराजय
मोहम्मद बिन तुगलक: जिसकी क्रूरता और दमनकारी नीतियों ने उसे संकट में डाला
दिल्ली का सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक (1325–1351 ई.) अपने समय का अत्यधिक आत्ममुग्ध और क्रूर शासक था। उसकी नीतियां – राजधानी का स्थानांतरण, ताम्र मुद्रा, और दक्षिण भारत में युद्ध – विफल रहीं। यही असफलताएं अंततः उसकी कमजोरी का कारण बनीं। महाराणा हम्मीर का सबसे बड़ा सैन्य अभियान सिंगोली का युद्ध था, जहाँ उन्होंने मोहम्मद बिन तुगलक को बंदी बनाया।
सिंगोली का युद्ध
महाराणा हम्मीर की बढ़ती शक्ति से चिंतित होकर मोहम्मद बिन तुगलक ने मेवाड़ पर चढ़ाई की। किंतु वह यह भूल गया कि मेवाड़ की भूमि पर क्षत्रिय योद्धा जन्म लेते हैं। हम्मीर ने न सिर्फ उसका सामना किया, बल्कि रणनीति, साहस और स्थानीय समर्थन से मोहम्मद बिन तुगलक की सेना को परास्त कर दिया।
इतिहासकारों के अनुसार, युद्ध में हार के बाद मोहम्मद बिन तुगलक स्वयं बंदी बना लिया गया। यह एक ऐसा प्रसंग है जो भारतीय इतिहास के पन्नों में छुपाया गया , लेकिन क्षत्रिय इतिहास और लोकगाथाओं में जीवित है।
युद्ध का कारण
- हम्मीर ने मालदेव के पुत्र जैज़ा को हराकर मेवाड़ पर कब्जा किया।
- जैज़ा ने तुगलक से शिकायत की, जिसके बाद सुल्तान ने 90,000 सैनिकों के साथ मेवाड़ पर हमला किया ।
युद्ध का परिणाम
- हम्मीर की 20,000 घुड़सवार और 10,000 पैदल सेना ने तुगलक की विशाल सेना को पराजित किया ।
- हरिदास (मालदेव के पुत्र) को मार गिराया और तुगलक को बंदी बना लिया।
- तुगलक को 6 महीने तक चित्तौड़ में कैद रखा गया और अंततः 50 लाख रुपये, 100 हाथियों और अजमेर, रणथंभौर, नागौर व सोपोर के किले छोड़ने के बाद छोड़ा गया ।
छह महीने की कैद: एक अपमान, एक चेतावनी
महाराणा हमीर ने तुगलक को छः महीने तक चित्तौड़ में बंदी बनाकर रखा। यह कोई साधारण निर्णय नहीं था, बल्कि यह एक राजनीतिक संदेश था – “क्षत्रिय आत्मसम्मान को कभी भी रौंदा नहीं जा सकता।”
माना जाता है कि तुगलक को रिहा करने के लिए दिल्ली से सोने, चांदी और हाथियों की भारी सौगात भेजी गई थी। इस घटना ने न केवल मेवाड़ की शक्ति को पुनः स्थापित किया, बल्कि दिल्ली सल्तनत की सीमितता भी स्पष्ट कर दी।
महाराणा हम्मीर की विरासत
- मेवाड़ का पुनरुत्थान: उन्होंने मेवाड़ को दिल्ली सल्तनत के चंगुल से मुक्त कराया।
- सिसोदिया वंश की स्थापना: उनके बाद सभी महाराणा इसी वंश से हुए।
- रणनीतिक विजय: चित्तौड़ और सिंगोली की लड़ाई ने राजपूत शक्ति को पुनर्जीवित किया।
- धार्मिक सहिष्णुता: उन्होंने देवी बरबड़ीजी के मंदिर का निर्माण करवाया।
इतिहास के प्रमाण
कुछ इतिहासकार इस घटना को लोककथाओं पर आधारित मानते हैं, तो अधिकतर इतिहासकार राजपूत स्त्रोतों, ख्यातों और भाट ग्रंथों को आधार मानते हुए इसे सत्य मानते हैं।
“ए.सी.एल. कार्लाइल” जैसे कुछ अंग्रेज इतिहासकारों ने भी इस घटना का जिक्र किया है। परंतु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि महाराणा हम्मीर ने मेवाड़ को खिलजी-तुगलक युग की परतंत्रता से मुक्त कर स्वतंत्रता की नई रोशनी दी।
निष्कर्ष: भारतीय स्वाभिमान
महाराणा हम्मीर ने साबित किया कि साहस और रणनीति के बल पर कोई भी विपरीत परिस्थिति पलटी जा सकती है। उनकी सिंगोली की विजय न केवल मेवाड़, बल्कि समूचे भारत के लिए गौरव की गाथा है। आज भी राजस्थान के लोकगीतों में उनका नाम श्रद्धा से लिया जाता है।
अगर महाराणा प्रताप बलिदान के पर्याय हैं, तो महाराणा हम्मीर पुनरुत्थान और पराक्रम के प्रतीक हैं। उन्होंने यह सिखाया कि हार को जीत में कैसे बदला जाए ।
सन्दर्भ:
- विकिपीडिया – राणा हम्मीर सिंह
- सिंगोली की लड़ाई
- ऐतिहासिक ग्रंथों के उल्लेख
आज के भारत के लिए सीख
भारत जैसे राष्ट्र के लिए जहां क्षत्रिय इतिहास को षड़यंत्र के तहत भुला दिया जाता है, महाराणा हम्मीर की शौर्य गाथा हमें यह याद दिलाती है कि:
- क्षत्रिय संस्कृति और इतिहास पर गर्व करना चाहिए।
- क्षत्रिय की केवल तलवार नहीं, बल्कि क्षत्रिय धर्म, उनकी रणनीति और आत्मबल ही राष्ट्र निर्माण की नींव होती है।
- जब भी विषम संकट आता है, तो कोई ना कोई हम्मीर पुनर्जागरण करता है।
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