तनोट माताजी वह दिव्य शक्ति हैं, जो मरुस्थल की तपती रेत में भी आशा और सुरक्षा की शीतल छाया बनकर विराजती हैं। सीमा पर स्थित उनका मंदिर केवल एक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि साक्षात माँ की कृपा का प्रत्यक्ष प्रमाण है, जहाँ शस्त्र भी निष्क्रिय हो जाते हैं और शरणागत की रक्षा स्वयम् शक्ति स्वरुपा माँ करती हैं। तनोट माता को माँ हिंगलाज का अवतार माना जाता है।
1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में जब सैकड़ों बम मंदिर परिसर में गिरे, तब भी माँ की कृपा से एक भी बम न फटा। यह किसी चमत्कार से कम नहीं, बल्कि देवी की जीवंत उपस्थिति और उनके जाग्रत स्वरूप का प्रमाण माना जाता है।
Kshatriya Sanskriti के इस लेख में, हम तनोट माता के इतिहास, उनके अद्भुत चमत्कारों, मंदिर की वास्तुकला और देशभक्ति से जुड़ी आस्था के बारे में विस्तार से जानेंगे।
तनोट माताजी – देश एवं सैनिकों की ‘रक्षाकवच’ देवी
भारत की सीमाओं पर अनेक देवी-देवताओं के मंदिर स्थित हैं, जिनमें से एक तनोट माता मंदिर अपने चमत्कारों और आस्था के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले में भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट स्थित है और इसे “सीमा की रक्षक देवी” के रूप में पूजा जाता है। यहाँ के सैनिक और स्थानीय लोग मानते हैं कि तनोट माता उनकी रक्षा करती हैं, और 1965 व 1971 के युद्धों में उनके चमत्कारों ने भारतीय सेना की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तनोट माताजी मंदिर का निर्माण एवं इतिहास

तनोट माता मंदिर का निर्माण लगभग 12वीं शताब्दी में भाटी राजपूत वंश के शासकों द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर राजस्थान के जैसलमेर ज़िले के तनोट गांव में स्थित है और हिंगलाज माता (या अवतारी देवी) के रूप में पूजित तनोट माता को समर्पित है।
तनोट माताजी को कुछ लोग “रुमाल वाली माता जी” भी कहते हैं, लेकिन यह नाम विशेष रूप से राजस्थान और सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रचलित है और इससे संबंधित स्थानीय लोक आस्था और परंपराएं जुड़ी हुई हैं।
मुख्य बिंदु:
- निर्माणकर्ता: भाटी राजवंश के राजा तणु राव भाटी
- निर्माण काल: लगभग 12वीं शताब्दी
- माता का स्वरूप: हिंगलाज माता का अवतार मानी जाती हैं, जिन्हें पाकिस्तान के बलूचिस्तान में भी पूजा जाता है।
- विशेषता:
- 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में इस मंदिर पर कई बम गिरे लेकिन एक भी बम नहीं फटा।
- इस चमत्कार के बाद भारतीय सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने मंदिर की देख -रेख संभाली। आज भी मंदिर की सेवा BSF करती है।
तनोट माताजी और भारतीय सेना
1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, पाकिस्तानी सेना ने इस क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए कई हजार बम और मिसाइलें दागीं, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से एक भी बम नहीं फटा। सैनिकों का मानना है कि यह तनोट माता का चमत्कार था। इस घटना के बाद, भारतीय सेना (BSF) ने मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी संभाली और आज भी यहाँ एक BSF का कैंप स्थित है।
तनोट माताजी के चमत्कार: विज्ञान भी हैरान !
1. 1965 के युद्ध में न फटने वाले बम
पाकिस्तानी सेना ने तनोट क्षेत्र पर 3000 से अधिक बम गिराए, लेकिन केवल 450 ही फटे। बाकी बम या तो निष्क्रिय रहे या मंदिर के आसपास गिरकर भी कोई नुकसान नहीं पहुँचा। आज भी ये बम मंदिर परिसर में संग्रहालय के रूप में रखे गए हैं।
2. 1971 के युद्ध में देवी का आशीर्वाद
1971 के युद्ध में भी, भारतीय सैनिकों ने तनोट माता की पूजा की और लोंगेवाला की लड़ाई में विजय प्राप्त की। इस युद्ध में भारत के 120 सैनिकों ने पाकिस्तान की 2000 सैनिकों वाली टुकड़ी को हराया, जिसे एक चमत्कारिक जीत माना जाता है।
3. आज भी सैनिकों की श्रद्धा
आज भी, BSF के जवान हर मंगलवार और शनिवार को तनोट माता की विशेष पूजा करते हैं। मान्यता है कि जो सैनिक सच्चे मन से देवी की आराधना करते हैं, उनकी रक्षा होती है।
विदेशी मीडिया में भी धूम है मंदिर की
तनोट माता मंदिर को उसके चमत्कारी इतिहास, युद्ध के दौरान अद्भुत रक्षा, और भारतीय सेना व भक्ति के मेल के कारण विदेशी मीडिया द्वारा भी कवर किया गया है। यह एक ऐसा स्थल है जहाँ आस्था और राष्ट्रभक्ति एक साथ दिखाई देती है, और यही बात अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करती है।
तनोट माता मंदिर को विदेशी मीडिया और डॉक्यूमेंट्री और फ़िल्म निर्माताओं ने भी कवर किया है, खासकर 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान इसके साथ जुड़े अद्भुत चमत्कारों के कारण।
विदेशी मीडिया में कवरेज के मुख्य कारण:
- युद्ध में चमत्कार:
- 1965 के युद्ध में पाकिस्तान की ओर से मंदिर परिसर में 450 से अधिक बम गिराए गए थे, लेकिन एक भी बम नहीं फटा। यह घटना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी।
- 1971 के युद्ध में भी जब पाकिस्तानी टैंक भारत में घुसने लगे थे, तो भारतीय सेना को ऐसा लगा मानो कोई अलौकिक शक्ति रक्षा कर रही हो। यह कथा कई मीडिया रिपोर्ट्स और सैन्य लेखों में दर्ज की गई।
- BSF की भूमिका:
- भारतीय सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने मंदिर की सेवा और देखरेख अपने हाथ में ली। यह किसी भी धार्मिक स्थल पर सुरक्षा बलों की नियमित सेवा का दुर्लभ उदाहरण है, जिसे कई विदेशी पत्रकारों ने कवर किया।
- डॉक्युमेंट्री और रिपोर्ट्स:
- BBC, National Geographic जैसे अंतरराष्ट्रीय चैनलों और पत्रकारों ने राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों, खासकर भारत-पाक बॉर्डर पर आस्था और सेना के बीच के संबंधों पर सामग्री बनाई है, जिसमें तनोट माता मंदिर को भी शामिल किया गया है।
- फ़िल्म और सिनेमा के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय पहचान:
- हिंदी फिल्म “Border” (1997), जो 1971 के युद्ध पर आधारित है, इसमें तनोट माता का उल्लेख है। इस फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की सैन्य और आध्यात्मिक परंपराओं की चर्चा को बढ़ाया।
मंदिर की वास्तुकला और दर्शनीय स्थल
तनोट माताजी मंदिर राजस्थानी शैली में बना हुआ है और यहाँ का वातावरण अत्यंत शांत और आध्यात्मिक है। मंदिर के मुख्य आकर्षण हैं:
- अखंड ज्योत: जो सैकड़ों साल से निरंतर जल रही है।
- संग्रहालय: जहाँ 1965 के युद्ध के न फटे बम रखे गए हैं।
- त्रिनेत्री मूर्ति: तनोट माता की तीन आँखों वाली प्रतिमा।
- लोंगेवाला युद्ध स्मारक: जो यहाँ से कुछ किलोमीटर दूर है।
कैसे पहुँचें तनोट माता मंदिर ?
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर (300 किमी)।
- रेल मार्ग: जैसलमेर रेलवे स्टेशन (130 किमी)।
- सड़क मार्ग: जैसलमेर से बस या टैक्सी द्वारा।
सुरक्षा नोट: चूँकि यह सीमा क्षेत्र है, भारतीय नागरिकों को पहचान पत्र (आधार/वोटर आईडी) साथ ले जाना अनिवार्य है। विदेशियों के लिए सीमा सुरक्षा बल (BSF) से अनुमति लेनी पड़ती है।
निष्कर्ष: आस्था और सुरक्षा का प्रतीक
तनोट माताजी मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि देशभक्ति और सैनिकों की श्रद्धा का भी प्रतीक है। यहाँ का रहस्यमयी इतिहास और चमत्कार लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं।
- “यत्र देवी, तत्र विजयः” – यहाँ 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना द्वारा गिराए गए 450 बम भी माता की कृपा से निष्फल हुए। आज भी उन अस्त्रों को मंदिर परिसर में रखकर दैवी शक्ति का प्रमाण दिखाया जाता है।
- क्षत्रियों की कुलदेवी के रूप में पूजित तनोट माता भक्तों के संकट हरने वाली हैं। सैनिकों की आराध्या यह देवी “जय करे तनोट वाली!” के जयघोष से सीमाओं को पावन करती हैं।
- मान्यता है कि माता की ज्योति अग्नि तत्व का प्रतीक है, जो अंधकार और भय को दूर कर आत्मबल प्रदान करती है।
यह मंदिर भारत की रक्षा करने वाले वीर सैनिकों के लिए माँ का एक तीर्थस्थल है, जहाँ वे शक्ति, संबल और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। जिनका मंदिर राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट स्थित है। यह स्थान केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि शक्ति, श्रद्धा और रक्षा के दिव्य सम्मिलन का प्रतीक है।
अगर आप राजस्थान की यात्रा पर हैं, तो इस “सीमा की रक्षक देवी” के दर्शन अवश्य करें !
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