भारत के इतिहास में अनेक वीर, पराक्रमी और दूरदर्शी क्षत्रिय राजा हुए हैं,जिन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन किया है लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं जो अपने युग की सीमाओं को लांघकर आने वाले युगों को भी दिशा देते हैं। ऐसे ही एक महानायक थे महाराजा गंगा सिंह जी – जिनका नाम सुनते ही राजस्थान की रेत में जीवन उगाने वाले एक आधुनिक भागीरथ की छवि उभरती है। वे केवल बीकानेर के महाराजा नहीं थे, बल्कि एक जननायक, एक दूरदर्शी प्रशासक और जल संरक्षण की महान परंपरा के पुनर्स्थापक थे।
महाराजा गंगा सिंह जी: आधुनिक भारत के भागीरथ
जन्म और प्रारंभिक जीवन
महाराजा गंगा सिंह जी का जन्म 3 अक्टूबर 1880 को बीकानेर राजघराने में हुआ था। वे महाराजा लाल सिंह जी के पुत्र थे और मात्र 7 वर्ष की आयु में 1887 में बीकानेर की राजगद्दी पर आसीन हुए। प्रारंभिक शिक्षा मेयो कॉलेज, अजमेर में हुई, जो उस समय राजपूत राजाओं के लिए एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान था।
उनकी शिक्षा-दीक्षा राजपरिवार के परंपरागत ढंग से हुई, जिसमें शास्त्रों के साथ-साथ आधुनिक विषयों का भी ज्ञान दिया गया।
शासन की शुरुआत: जन-कल्याण की नींव
सन् 1887 में, महज 7 वर्ष की आयु में, उनके पिता की मृत्यु के बाद, गंगा सिंह जी बीकानेर के महाराजा बने। हालांकि, नाबालिग होने के कारण, प्रारंभ में एक राजप्रतिनिधि परिषद ने शासन संभाला। 1898 में, 18 वर्ष की आयु में, उन्होंने पूर्ण रूप से शासन की बागडोर संभाली।
युवा उम्र में ही गद्दी संभालने के बावजूद, महाराजा गंगा सिंह जी ने शासन के सभी पहलुओं में गहन रुचि दिखाई। उन्होंने प्रशासनिक प्रणाली को पारदर्शी और उत्तरदायी बनाया। बीकानेर जो एक समय केवल रेत और सूखे की धरती मानी जाती थी, वहाँ उन्होंने सिंचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाओं की क्रांति ला दी।
भागीरथी योगदान: गंग नहर परियोजना
छप्पनिया अकाल: संकट की घड़ी
1899-1900 में राजस्थान (राजपूताना) में भयंकर अकाल पड़ा जिसे “छप्पनिया अकाल” (विक्रम संवत 1956 के कारण) के नाम से जाना जाता है। इस अकाल में:
- अनुमानित 1.75 लाख लोगों की मृत्यु हो गई
- लोगों को खेजड़ी के वृक्ष की छाल खाकर जीवनयापन करना पड़ा
- इसकी भयावहता के कारण राजस्थान में आज भी 56 की संख्या अशुभ मानी जाती है और बही-खातों में पृष्ठ संख्या 56 रिक्त छोड़ी जाती है
इस संकट से प्रजा को स्थायी राहत देने के लिए महाराजा गंगा सिंह ने गंगनहर परियोजना की कल्पना की
गंगनहर: एक क्रांतिकारी परियोजना
राजस्थान की धरती को अगर आज भी कोई जीवनदान देने वाला शासक माना जाता है, तो वह हैं महाराजा गंगा सिंह जी। उन्होंने 1927 में गंग नहर परियोजना की नींव रखी। सतलुज नदी से पानी लाकर बीकानेर की मरुभूमि को हरा-भरा करना उनके दूरदृष्टि का प्रमाण था। यह कार्य इतना कठिन था कि ब्रिटिश इंजीनियर सहित पूरी दुनिया भी इसे असंभव मानती थी , पर गंगा सिंह जी की दृढ़ निष्ठा और संकल्प ने इसे संभव किया।
- 1906 में पंजाब के चीफ इंजीनियर आर.जी. कनेडी के साथ सतलुज-वैली प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार की
- पंजाब और अन्य रियासतों के विरोध के बावजूद 21 वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ी
- 1921 में नहर की नींव रखी और 26 अक्टूबर 1927 को 129 किमी लंबी गंगनहर का निर्माण पूरा हुआ
- उस समय यह दुनिया की सबसे लंबी नहर थी जिस पर 8 करोड़ रुपये खर्च हुए
- आज यह नहर 30 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है
इसने हजारों एकड़ बंजर भूमि को उपजाऊ बना दिया।
“यह नहर न केवल पानी लाई, बल्कि लाखों लोगों की आशाएँ और समृद्धि भी लेकर आई।”
संदर्भ: Government of Rajasthan Irrigation Department Archives, 1930; British India Gazetteer, Vol. IV
आधुनिक बीकानेर का निर्माण
महाराजा गंगा सिंह जी ने बीकानेर को एक आधुनिक राज्य बनाने की दिशा में अनेक कदम उठाए:
- शिक्षा का विस्तार: उन्होंने अनेक स्कूल और कॉलेज स्थापित किए, जिनमें डूंगर कॉलेज (बीकानेर) प्रमुख है।
- रेलवे लाइन का निर्माण: बीकानेर को रेलवे नेटवर्क से जोड़कर व्यापार और यातायात को बढ़ावा दिया।
- चिकित्सा सुविधाएँ: अस्पतालों की स्थापना कर जनस्वास्थ्य को सुधारा।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और भारत की आवाज़
महाराजा गंगा सिंह जी केवल एक क्षेत्रीय शासक नहीं थे, बल्कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज़ बुलंद की। वे एकमात्र भारतीय शासक थे जिन्हें 1919 में वर्साय संधि (Treaty of Versailles) पर हस्ताक्षर करने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहकर भी भारतीय हितों की रक्षा की।
प्रमुख भूमिकाएँ:
- 1917 में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतिनिधि के रूप में प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप यात्रा।
- वर्साय शांति संधि में भारत की भागीदारी।
- 1921 में “Prince of Wales” की भारत यात्रा के आयोजक।
- ब्रिटिश इम्पीरियल वार केबिनेट के एकमात्र गैर-अंग्रेज सदस्य थे
- लीग ऑफ नेशंस के अधिवेशन में भारत का प्रतिनिधित्व किया
लंदन गोलमेज सम्मेलन में भागीदारी
1930-31 में, उन्होंने लंदन गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जहाँ उन्होंने भारतीय रियासतों के हितों की रक्षा की।
भारतीय संविधान सभा के सदस्य
स्वतंत्रता के बाद, वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य बने और नए भारत के निर्माण में अपना योगदान दिया।
संदर्भ: The Versailles Treaty Records, British National Archives, 1919
युद्धों में योगदान
महाराजा गंगा सिंह ने सैन्य क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया: महाराजा गंगा सिंह जी ने ब्रिटिश और भारतीय सेना के साथ मिलकर प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया। उनके नेतृत्व में बीकानेर की सेना ने फ्रांस, मिस्र और फिलिस्तीन में बहादुरी से युद्ध लड़ा।
- “गंगा रिसाला” (ऊँटों की सैनिक टुकड़ी) के साथ प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया
- गंगा रिसाला आज सीमा सुरक्षा बल (BSF) का हिस्सा है
शिक्षा और स्वास्थ्य में योगदान
गंगा सिंह जी मानते थे कि शिक्षा ही समाज की सच्ची शक्ति है। उन्होंने कई विद्यालयों, तकनीकी संस्थानों और महिला शिक्षा केंद्रों की स्थापना करवाई। बीकानेर में मेडिकल कॉलेज, जनरल हॉस्पिटल और आयुर्वेदिक संस्थानों का विकास उन्हीं की देन है।
- गंगा गोल कॉलेज की स्थापना (1912)
- बीकानेर जनरल हॉस्पिटल की नींव
- महिला शिक्षा के लिए विशेष योजनाएँ
- उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया और कई गर्ल्स स्कूल स्थापित किए।
प्रशासनिक और सामाजिक सुधार
महाराजा गंगा सिंह ने केवल नहर ही नहीं बल्कि कई अन्य क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय कार्य किए:
- 1922 में बीकानेर में देश की पहली रियासत के रूप में हाईकोर्ट की स्थापना की
- 1913 में चुनी हुई जनप्रतिनिधि सभा का गठन किया
- कर्मचारियों के लिए एंडोमेंट एश्योरेंस स्कीम और जीवन बीमा योजना लागू की
- बाल विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट कड़ाई से लागू किया
- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के निर्माण में महत्वपूर्ण आर्थिक सहायता प्रदान की
महाराजा गंगा सिंह जी जातिवाद, बाल विवाह और अशिक्षा के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने सामाजिक सुधारों के माध्यम से बीकानेर को एक आधुनिक रियासत में बदला:
- छुआछूत और जातीय भेदभाव के विरुद्ध कड़े नियम
- न्याय प्रणाली में पारदर्शिता
- कर प्रणाली में सरलता
क्यों हैं जन-जन के पूजनीय ?
महाराजा गंगा सिंह जी का शासन, मुगलों की तरह कोई दमनकारी शासन नहीं, बल्कि जन-सेवा पर आधारित एक रचनात्मक युग था। उनके कार्य आज भी बीकानेर की धरती पर जीवंत हैं:
- आज भी गंग नहर बीकानेर, श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों की जीवनरेखा है।
- कई संस्थानों का निर्माण किया जो उन्ही के नाम है। बाद में कुछ संस्थानों का नाम भी …
- राजस्थान के किसान उन्हें धरतीपुत्र और भागीरथी मानते हैं।
निधन एवं स्मृतिशेष
महाराजा गंगा सिंह जी का 2 फरवरी, 1943 को निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। बीकानेर में गंगा सिंह स्टेडियम, गंगा गोल्डन जुबली संग्रहालय और लालगढ़ पैलेस उनकी याद दिलाते हैं।
निष्कर्ष: एक राजा जो युगों तक रहेगें अमर
महाराजा गंगा सिंह जी केवल इतिहास का एक पृष्ठ नहीं, बल्कि प्रेरणा का एक समुंदर हैं। उन्होंने दिखाया कि यदि संकल्प हो, तो मरुभूमि भी हरी-भरी बन सकती है, और यदि सेवा की भावना हो, तो राजसिंहासन भी जनकल्याण का साधन बन सकता है। आज भी, जल संरक्षण, कृषि विकास और शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्य प्रेरणा देते हैं। राजस्थान सरकार ने “गंग नहर” को आज भी एक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया है।
वे आधुनिक भारत के भागीरथ हैं – जिनकी गाथा हर भारतवासी को गर्व से भर देती है।
महाराजा गंगा सिंह जी ने न केवल बीकानेर, बल्कि पूरे भारत को एक नई दिशा दी। उनका जीवन साहस, दूरदर्शिता और जनसेवा का अनूठा संगम था। वे सच्चे अर्थों में “मरुधरा के भागीरथ” थे, जिन्होंने रेगिस्तान में जीवन की धारा बहा कर आदर्श राजा का उदाहरण प्रस्तुत किया जो आधुनिक भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित हुआ।
“महान शासक वह नहीं जो सिर्फ राज करे, बल्कि वह जो इतिहास बदल दे। गंगा सिंह जी ने यही किया।”
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