राव जोधा: विस्तार और स्थायित्व का नया इतिहास

अपने पिता के साम्राज्य की विषम परिस्थितियों को चुनौती के रूप में स्वीकार कर, राव जोधा ने विस्तार और स्थायित्व का एक नया इतिहास रचने का श्रीगणेश किया। उन्होंने महज 700 विश्वासपात्र साथियों के साथ छेड़े पन्द्रह वर्षों के कठिन संघर्ष से मारवाड़ को मेवाड़ से मुक्त कराया और खोया राज्य पुनर्स्थापित किया। मात्र इतने से संतुष्ट न होकर, उन्होंने अपने राज्य का विस्तार अजमेर, नागौर, साम्भर तक फैलाया।

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स्थायित्व की नींव रखते हुए, उन्होंने अपने भाइयों और पुत्रों को विभिन्न क्षेत्रों का दायित्व देकर राठौड़ शक्ति को संगठित किया। उनके सुपुत्र राव बीका ने बीकानेर राज्य स्थापित किया, जिससे राठौड़ वंश का प्रभाव दूर-दूर तक स्थायी बना। इस प्रकार, राव जोधा ने न केवल एक साम्राज्य विजित किया, बल्कि एक ऐसी विरासत को जन्म दिया जिसने मारवाड़ के भाग्य को सदा के लिए सुदृढ़ कर दिया।

राव जोधा: मारवाड़ को नई दिशा

राव जोधा – केवल एक राजा नहीं, अपितु मारवाड़ की नियति के स्वयंभू स्रष्टा थे। जब राज्य लुप्त प्राय था, तब उन्होंने अदम्य संकल्प की मशाल जलाई। मेहरानगढ़ की अभेद्य शिला पर उनके इरादों की नींव पड़ी और जोधपुर नगरी, उनके स्वप्नों का स्वर्णिम प्रतिबिंब बनकर विश्व के मानचित्र पर अंकित हुई। उन्होंने प्रजा के हृदय में ‘राठौड़ स्वाभिमान’ की अमर ज्योति प्रज्वलित की। उनका शौर्य ही वह दिशासूत्र बना, जिसने मारवाड़ को अस्तित्व की धुंध से निकालकर शक्ति और समृद्धि के शाश्वत मार्ग पर अग्रसर किया।

राव जोधा का जीवन परिचय: विपत्तियों से विजय तक की यात्रा

जन्म और प्रारंभिक जीवन (1416-1438)

राव जोधा का जन्म 28 मार्च 1416 को मारवाड़ के शासक राव रणमल जी राठौड़ के घर हुआ। यह तिथि सबसे प्रचलित और अधिकांश आधुनिक संदर्भों में प्रयुक्त होती है। (गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार 1 अप्रैल 1416 और स्थानीय “ख्यात” (वंशावली) ग्रंथों में उल्लिखित हिंदू पंचांग के अनुसार – भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, विक्रम संवत 1472)

राव जोधा राव रणमल के दूसरे पुत्र ही थे। राव जोधा का जन्म भटियाणी रानी कोडमदे के गर्भ से धणला गांव में हुआ।

यह वह समय था जब राठौड़ वंश उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। राव रणमल अपने समय के महान योद्धा थे, जो मेवाड़ के महाराणा मोकल के संरक्षक भी बने।

लेकिन राजनीति की चालों ने राव जोधा के जीवन को एक त्रासदी में बदल दिया। 1438 में मेवाड़ में राव रणमल की हत्या के बाद, जोधा को अपने भाइयों सहित मंडोर से भागना पड़ा। यह शुरुआत थी एक लंबी निर्वासन यात्रा की – जो 24 साल तक चली।

राजस्थानी दोहा:

“रण में राणा, नीति में नागा,
जोधा थारो तेज अभागा।
मंडोर छूटी, मान न छूट्यो,
राठौड़ वंश को नाम न टूट्यो।”

इस दौरान राव जोधा ने सिवाना, सोजत, और आसपास के क्षेत्रों में शरण ली, लेकिन उनके मन में एक ही संकल्प था – मंडोर को वापस लेना

मंडोर का पुनर्विजय (1453): धैर्य और रणनीति का प्रतीक

24 वर्षों के संघर्ष के बाद, 1453 में राव जोधा ने मंडोर पर पुनः विजय प्राप्त की। यह केवल एक युद्ध नहीं था – यह एक पूरी पीढ़ी के धैर्य, योजना और अटूट इच्छाशक्ति का परिणाम था।

राव जोधा की सैन्य रणनीति में तीन प्रमुख तत्व थे:

  1. गठबंधन निर्माण: उन्होंने राजपूत सरदारों से संबंध मजबूत किए
  2. छापामार युद्ध: मरुस्थल की भूगोल का लाभ उठाकर शत्रुओं को परेशान करना
  3. जनसमर्थन: स्थानीय जनता का विश्वास जीतना

इतिहासकार डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अपनी पुस्तक “राजपूताने का इतिहास” में लिखा है:

“राव जोधा की विजय केवल तलवार की नहीं, बल्कि नीति और धैर्य की विजय थी।”

मंडोर की विजय के बाद, राव जोधा समझ गए कि मंडोर की भौगोलिक स्थिति सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर है। तभी उनके मन में एक साहसिक योजना ने जन्म लिया – एक नए शहर की स्थापना

राव जोधा: मारवाड़ के पुनर्निर्माण का स्वर्णिम युग

जब मारवाड़ की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही थी, तब राव जोधा उसके पुनर्जागरण के सूर्य बने! उन्होंने केवल राज्य ही नहीं, अपितु एक स्वाभिमान, एक अस्मिता और एक अमर विरासत का पुनर्निर्माण किया। मेहरानगढ़ की अभेद्य दीवारें और जोधपुर की नीली नगरी केवल पत्थर नहीं, अपितु उनके अदम्य संकल्प के प्रतीक थे। उन्होंने राठौड़ शक्ति को न केवल पुनर्जीवित किया, बल्कि इसे सुदृढ़ साम्राज्य और समृद्ध संस्कृति में ढाला। उनके द्वारा स्थापित न्याय, प्रशासन और स्थापत्य कला ने मारवाड़ के लिए एक ऐसा स्वर्णिम युग प्रारंभ किया, जिसकी चमक आज भी इतिहास के पन्नों में दैदीप्यमान है। यह केवल पुनर्निर्माण नहीं, एक महान सभ्यता की नई सुबह थी!

जोधपुर की स्थापना (1459): मरुस्थल में उगा स्वर्णिम सूरज

13 मई 1459: एक ऐतिहासिक दिन

चिड़ियानाथ पहाड़ी – एक बंजर, पथरीली, और पानी की कमी वाली जगह। कोई सामान्य व्यक्ति यहाँ नगर बसाने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। लेकिन राव जोधा सामान्य नहीं थे।

क्षत्रिय संस्कृति – मेहरानगढ़ फोर्ट

13 मई 1459 को ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के शुभ दिन, राव जोधा ने मेहरानगढ़ किले (तब इसे चिन्ताम्णि पर्वत दुर्ग कहा जाता था) की नींव रखी। किले की ऊंचाई समुद्र तल से 410 फीट (125 मीटर) थी – जो इसे आक्रमणों से सुरक्षित बनाती थी।

स्थापत्य विशेषज्ञ डॉ. सतीश चंद्र के अनुसार:

“मेहरानगढ़ भारत के सबसे सुरक्षित किलों में से एक है। इसकी दीवारें 36 मीटर ऊंची और 21 मीटर चौड़ी हैं – यह राव जोधा की दूरदर्शिता का प्रमाण है।”

राय जैता की समर्पण : नींव के नीचे दफ़्न हुआ एक योद्धा

जोधपुर की स्थापना के साथ एक दर्दनाक लेकिन ऐतिहासिक घटना जुड़ी है। किले की नींव रखते समय ज्योतिषियों ने कहा कि इस किले की मजबूती के लिए एक जीवित व्यक्ति की बलि आवश्यक है।

राय जैता, एक राजपूत योद्धा, ने स्वेच्छा से यह बलिदान स्वीकार किया। कहा जाता है कि राव जोधा ने उन्हें मना किया, लेकिन राय जैता ने कहा:

“महाराज, मेरा शरीर नश्वर है, लेकिन यदि मेरा बलिदान इस नगर को अमर बना सकता है, तो यह मेरा सौभाग्य है।”

आज भी मेहरानगढ़ किले में राय जैता की छतरी स्थित है, जो उनकी याद में बनाई गई। राव जोधा ने उनके परिवार को जागीर प्रदान की और सम्मान दिया।

जल प्रबंधन: मरुस्थल में जीवन का संचार

जोधपुर की सबसे बड़ी चुनौती थी – पानी। राव जोधा ने इस समस्या का समाधान अद्भुत इंजीनियरिंग से किया:

  1. बावड़ियों का निर्माण: किले के अंदर और शहर में कई बावड़ियां बनवाईं
  2. वर्षा जल संचयन: पहाड़ी से बहते पानी को संग्रहित करने की प्रणाली
  3. कुएं और तालाब: गुलाब सागर, रानीसर, और पदमसर जैसे तालाब
  4. भूमिगत जल मार्ग: किले में गुप्त जल आपूर्ति के रास्ते

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट के अनुसार:

“राव जोधा द्वारा बनाई गई जल प्रबंधन प्रणाली 15वीं सदी की सबसे उन्नत तकनीक थी।”

यह दूरदर्शिता थी जिसने जोधपुर को केवल एक किला नहीं, बल्कि एक जीवंत नगर बना दिया।

राव जोधा की शासन नीति: सिर्फ योद्धा नहीं, एक कुशल प्रशासक

मारवाड़ का विस्तार: 1459-1488

राव जोधा ने अपने शासनकाल में मारवाड़ को एक छोटे से राज्य से एक विशाल साम्राज्य में बदल दिया। उनकी विजय यात्रा में शामिल थे:

प्रमुख विजयें:

  • सोजत (1459): तांबे की खानों पर नियंत्रण
  • पाली (1460): व्यापारिक केंद्र का अधिग्रहण
  • मेड़ता (1462): बीकानेर मार्ग की सुरक्षा
  • जैतारण (1465): दक्षिणी सीमा की सुरक्षा
  • सिवाना (1470): अजमेर-गुजरात मार्ग पर नियंत्रण

परिणाम:
राव जोधा के शासनकाल के अंत तक, मारवाड़ लगभग 93,424 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था – जो आज के जोधपुर, बीकानेर, और नागौर जिलों को मिलाकर बना है।

न्याय और जनकल्याण: प्रजापालक राजा

राव जोधा केवल योद्धा नहीं थे – वे एक दयालु शासक भी थे। उनकी शासन नीति में शामिल था:

शासन के सिद्धांत:

  1. समानता का न्याय: जाति-धर्म के भेद के बिना न्याय
  2. व्यापार संवर्धन: व्यापारियों को सुरक्षा और छूट
  3. कृषि विकास: सिंचाई परियोजनाओं में निवेश
  4. धार्मिक सहिष्णुता: सभी धर्मों के मंदिरों का संरक्षण

राजस्थान राज्य अभिलेखागार में संरक्षित एक फरमान में लिखा है:

“राव जोधाजी री प्रजा सुखी अर समृद्ध रही। वे हर जाति ने समान मान देता।”
(राव जोधा जी की प्रजा सुखी और समृद्ध रही। वे हर जाति को समान सम्मान देते थे।)

सांस्कृतिक संरक्षण: कला और साहित्य का युग

राव जोधा के दरबार में कई विद्वान और कलाकार संरक्षण पाते थे:

  • चारण कवियों को प्रोत्साहन (वीर रस की कविताएं)
  • संगीतकारों का सम्मान
  • स्थापत्य कला का विकास (मेहरानगढ़ के भव्य महल)
  • राजस्थानी चित्रकला का प्रारंभिक रूप

जोधपुर शैली की लघु चित्रकला (Miniature Paintings) का आरंभ राव जोधा के काल में ही हुआ था।

युद्ध कौशल: राव जोधा की सैन्य प्रतिभा

रणनीतिक युद्ध तकनीकें

राव जोधा की सैन्य रणनीति में कई अनूठे तत्व थे:

1. मरुस्थलीय युद्ध कला:

  • रात के समय आक्रमण
  • ऊंट सवार सेना का उपयोग (गतिशीलता के लिए)
  • जल स्रोतों पर नियंत्रण करके दुश्मन को कमजोर करना

2. किलेबंदी की कला:

  • मेहरानगढ़ में 7 विशाल द्वार (प्रत्येक में रक्षा प्रणाली)
  • ऊंची दीवारों पर तोपें
  • गुप्त भागने के रास्ते

3. गुप्तचर नेटवर्क:

  • दुश्मन राज्यों में जासूसों की नियुक्ति
  • व्यापारियों से सूचना संग्रह
  • समय रहते तैयारी

अंतर: राव जोधा ने केवल विजय नहीं की – उन्होंने सुशासन और नगर निर्माण को प्राथमिकता दी, जो उन्हें अन्य विजेताओं से अलग करता है।

राव जोधा का व्यक्तिगत जीवन: परिवार और मूल्य

पारिवारिक जीवन

राव जोधा के 24 पुत्र और कई पुत्रियां थीं। उनके प्रमुख पुत्र थे:

  1. राव सातल (ज्येष्ठ पुत्र – असमय मृत्यु)
  2. राव सूजा (दूसरे पुत्र – उत्तराधिकारी)
  3. राव बीका (जिन्होंने बीकानेर की स्थापना की)
  4. राव कांधल (नागौर के शासक बने)

बीकानेर की स्थापना की कहानी:
राव बीका को पिता के जीवनकाल में ही अलग राज्य देने का निर्णय राव जोधा की दूरदर्शिता का प्रमाण है। उन्होंने समझा कि भाइयों में संघर्ष से बचने के लिए यह आवश्यक है।

व्यक्तित्व: सरल, धर्मपरायण, और दूरदर्शी

इतिहासकारों के अनुसार, राव जोधा:

  • सरल जीवन: राजसी वैभव के बावजूद सादगी पसंद
  • धार्मिक: प्रतिदिन पूजा-पाठ और दान
  • न्यायप्रिय: अपने पुत्रों के अपराध भी दंडित करते थे
  • कुशल प्रबंधक: सैन्य और प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों में निपुण

राजस्थानी लोकगीत में उनका वर्णन:

“जोधा राणो धीरज वालो, मन में भाव न काळो।
प्रजा सुखी, राज्य संपन्न, वीरां में वीर अकालो।”

(जोधा राणा धैर्यवान था, मन में कोई बुरा भाव नहीं। प्रजा सुखी, राज्य समृद्ध, वीरों में अकेला वीर।)

मृत्यु और विरासत: एक युग का अंत (1488)

अंतिम दिन

1488 (विक्रम संवत 1545) में 72 वर्ष की आयु में राव जोधा का निधन हुआ। उन्होंने 35 वर्षों तक मारवाड़ पर शासन किया और एक छोटे से राज्य को एक महान साम्राज्य में बदल दिया।

उनका अंतिम संस्कार मंडोर में हुआ – उसी स्थान पर जहां से उनकी यात्रा शुरू हुई थी। आज भी वहां उनकी देवल (स्मारक) स्थित है, जो राठौड़ वंश का पवित्र तीर्थ है।

स्थायी विरासत: आज भी जीवित है राव जोधा

1. जोधपुर शहर:

  • आज जोधपुर राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है
  • जनसंख्या: 10+ लाख (2023)
  • “Blue City” के नाम से विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल

2. मेहरानगढ़ किला:

  • विश्व के सबसे भव्य किलों में से एक
  • Time Magazine ने इसे “एशिया का सर्वश्रेष्ठ किला” घोषित किया (2013)
  • प्रति वर्ष 10+ लाख पर्यटक

3. राठौड़ वंश का विस्तार:

  • राव जोधा की विरासत से बीकानेर, किशनगढ़, ईडर जैसे राज्य बने

4. सांस्कृतिक प्रभाव:

  • मारवाड़ी भाषा और संस्कृति का विकास
  • राजस्थानी लोक संगीत और नृत्य
  • पारंपरिक कला और हस्तशिल्प

जोधपुर: आधुनिक विकास में राव जोधा की दृष्टि

आज का जोधपुर:

  • शैक्षिक केंद्र: AIIMS, IIT, NLU जैसे संस्थान
  • व्यापारिक hub: हस्तशिल्प, textiles, और tourism
  • Cultural capital: Heritage hotels, festivals, और कला

यह सब राव जोधा की उस नींव पर खड़ा है जो 565 साल पहले रखी गई थी।

निष्कर्ष

तो क्या राव जोधा सिर्फ एक राजा थे, या कुछ और भी? इतिहास के पन्नों को पलटने पर साफ़ होता है – वे एक vision थे, एक dream थे, और सबसे बढ़कर, वे एक अटूट इच्छाशक्ति के जीवंत प्रतीक थे।

24 साल का निर्वासन, अपने ही भाइयों से संघर्ष, सीमित संसाधन – ये सब राव जोधा को तोड़ नहीं पाए। उन्होंने न केवल अपना राज्य वापस लिया, बल्कि मरुस्थल के सीने पर एक ऐसा स्वर्णिम शहर बसा दिया जो आज 565 साल बाद भी गर्व से खड़ा है

जब आप मेहरानगढ़ की विशाल दीवारों को देखते हैं, जब आप जोधपुर की नीली गलियों में घूमते हैं, तो याद रखिए – यह सब एक व्यक्ति के सपने का परिणाम है। राव जोधा ने सिखाया कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों, यदि आपका संकल्प मजबूत है, तो आप रेगिस्तान में भी गुलाब खिला सकते हैं

आज जब हम 21वीं सदी की challenges का सामना कर रहे हैं, तो राव जोधा का जीवन एक सवाल छोड़ जाता है: क्या हम में वह धैर्य है? क्या हम में वह दूरदर्शिता है? क्या हम अपने सपनों को इतने जुनून से जी सकते हैं?

मारवाड़ की धरती पर राव जोधा ने तलवार से इतिहास लिखा और पत्थरों से स्वर्णिम भविष्य गढ़ा।

FAQs:

Q1: राव जोधा ने जोधपुर की स्थापना कब और क्यों की?
उत्तर: राव जोधा ने 13 मई 1459 को जोधपुर की स्थापना की। मंडोर की भौगोलिक स्थिति सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर थी, इसलिए उन्होंने चिड़ियानाथ की पहाड़ी पर एक सुरक्षित और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान पर नया शहर बसाया।

Q2: मेहरानगढ़ किला इतना प्रसिद्ध क्यों है?
उत्तर: मेहरानगढ़ किला 410 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जिसकी दीवारें 36 मीटर ऊंची और 21 मीटर चौड़ी हैं। इसे Time Magazine ने एशिया का सर्वश्रेष्ठ किला घोषित किया है। इसकी स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्व अद्वितीय है।

Q3: राव जोधा के कितने पुत्र थे?
उत्तर: राव जोधा के 24 पुत्र थे, जिनमें राव सूजा (उत्तराधिकारी), राव बीका (बीकानेर के संस्थापक), और राव कांधल (नागौर के शासक) प्रमुख थे।

Q4: क्या राव जोधा और राव बीका में संघर्ष हुआ था?
उत्तर: नहीं, राव जोधा ने दूरदर्शिता से अपने पुत्र बीका को अलग राज्य देने का निर्णय लिया, जिससे भाइयों में संघर्ष टल गया। इस तरह बीकानेर राज्य की स्थापना हुई।

Q5: राव जोधा की मृत्यु कब हुई?
उत्तर: राव जोधा की मृत्यु 1488 (विक्रम संवत 1545) में 72 वर्ष की आयु में हुई। उन्होंने 35 वर्षों तक मारवाड़ पर शासन किया।

संदर्भ ग्रंथ

  1. “Annals and Antiquities of Rajasthan” – Colonel James Tod
  2. “राजपूताने का इतिहास” – डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा
  3. राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर – Historical Records
  4. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) – मेहरानगढ़ संरक्षण रिपोर्ट
  5. “The Rathores of Marwar” – Dr. Nandita Prasad Sahai
  6. UNESCO World Heritage Documentation – Rajasthan Hill Forts

खास आपके लिए –

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